अगर मैं अपनी बात करूँ, तो लोगो का यह कहना की हम औरतों को देवी समान मानते है, मुझे यह किसी वाहियाद बात से ज्यादा कुछ नज़र नहीं आती ख़ास तौर पर जब बात महिलाओं के हक़ की हो, उनकी आजादी के बारे में हो। इसी के साथ यह और बुरा हो जाता है जब कोई औरत ख़ास तौर पर जब कोई पारंपरिक महिला इस बात पर यकीन कर लेती है कि वह एक देवी समान है।
क्यूंकि यह एक बहुत ही सुंदर दिखने वाले पिंजरे से ज्यादा कुछ भी नहीं, इस पिंजरे को आप दुनियाँ का सबसे खूबसूरत पिंजरा भी कह सकते है लेकिन दुनियाँ का सबसे ज्यादा खूबसूरत पिंजरा भी आपको आपकी आजादी नहीं दे सकता, आपको आजादी के लिए न चाहते हुए भी इस पिंजरे को तोडना तो होगा ही। और अगर यह पिंजरा कुछ दे सकता है तो वह बस कुछ छड़ कि ख़ुशी लेकिन उसके लिए भी आपको अपनी आजादी दाव पर लगानी होगी।
पहले जब महिलायें अपने अधिकार और अपनी स्वतन्त्रा के बारे में ज्यादा नहीं सोचा करती थी तब वह सब इस पिंजरे में ही रहा करती थी लेकिन आज खासकर हिन्दुस्तान में जब महिलाओं ने अपने अधिकार और अपनी स्वतंत्रता पर गौर करना शुरू किया और जब अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना शुरू किया तब ज्यादातर महिलाओं के लिए इस पिंजरे को तोडना सबसे बड़ा चुनौती का काम रहा क्यूंकि वह इतना खूबसूरत जो बनाया गया था।
ज्यादातर महिलायें इस पिंजरे को बिना तोड़े ही आजादी चाहती है जो नामुमकिन है, तो वह महिलायें इस पिंजरे को बस थोड़ा और बड़ा करने के हक़ में अपनी आवाज़ उठाने लगी जिससे वह थोड़ा स्वतंत्र महसूस कर सके और इस सुंदर से पिंजरे का आनंद भी ले सके।
आज भी मैं कई महिलाओं को अक्सर देख लेता हूँ जो बड़ा गर्व करती है जब उन्हें कोई देवी समान पुकारता है या जो इसे बड़े गर्व के साथ हिंदुस्तान कि संस्कृति कहता है लेकिन क्या हकीकत में इसमें ऐसा कुछ गर्व करने लायक है क्यूंकि यह आपको भी पता है कि "आप कोई देवी नहीं हो।" आप भी बस सब कि तरह एक मनुष्य हो।
कुछ महिलाएं इस शीर्षक को कभी खोना नहीं चाहती लेकिन यह बात उन्हें समझनी चाहिए कि यह शीर्षक आपको केवल एहसास दिलाता है कि आप शक्तिशाली है वो भी आपकी असल छमताओं और आपकी आजादी छीन कर।
अगर आप थोड़ा धयान से सोचोगे तो पाएंगे की आप राजा तो बन गए लेकिन आपके पास राजा जैसा कोई भी अधिकार नहीं, सारे अधिकार यहां तक की आपके खुद के भी अधिकार किसी और के हाथ में है।
बहुत लम्बे समय से या यूं कहे इस शीर्षक(देवी समान) ने महिलाओं को कभी इस शीर्षक को खोने के डर के अलावा कुछ और नहीं दिया। आप थोड़ा गौर करें तो आप खुद देख पाएंगे की इस शीर्षक ने आपको कभी कुछ नहीं दिया सिवाय डर के। इस शीर्षक ने कई सालों से महिलाओं को वो करने पर मजबूर किया है और कर रहा है जो वह कभी करना ही नहीं चाहती थी या है। न करने की चाहत रखते हुए भी कई महिलाओं ने वो सब किया केवल इसलिए क्यूंकि उन्हें पता था की अगर वह यह सब नहीं करेंगी, अगर वह उनकी आज्ञा नहीं मानेंगी तो यह समाज उनसे उनका यह शीर्षक या कहें यह सुन्दर दिखने वाला पिंजरा छीन लेगा।
मैंने महिला दिवस पर एक वीडियो देखा था, जो मेरी ही बहन ने हमारे फ़ैमिली व्हाट्सप्प ग्रुप में साँझा किया था। वह वीडियो महिलाओं के लिए बनाया गया था। जिसमे एक व्यक्ति ने महिलाओं पर लिखे कई सारे कोट्स(उल्लेख) पड़े थे। वह सब अपनी जगह ठीक था लेकिन इसी के साथ उसने आज कल की महिलाओं के कपड़ो की पसंद पर टिपडी भी की। उसने इस 'देवी समान' विचार के माध्यम से यह बताना चाह की महिलाओं को इस तरह के कपडे क्यों नहीं पहनने चाहिए और किस तरह के ही क्यों पहनने चाहिए।
उसने कहा की हमारी भारतीय परम्परा स्त्री को देवी समान मानती है और इसलिए ही उसे यह नहीं यह पहनना चाहिए।
लेकिन मुख्य सवाल जो मेरे मेरे दिमाग में पनप रहा था वह यह था की "क्या हकीकत में हमारी संस्कृति महिलाओं को भगवान का दर्जा देती है या यह बस एक ढोंग है जिससे महिलाओं के दिमाग से आजादी का विचार निकाला जा सके?" क्यूंकि मैंने इसे केवल कहि इंटरनेट पर ही पड़ा देखा है हकीकत में इसे किसी को लागू करते नहीं देखा।
क्यूंकि एक तरफ तो आप महिलाओं को भगवान का दर्जा दे रहे है लेकिन वहीं उसी झड़ आप उनके लिए खुद नियम तय कर रहे है। आप उन्हें ही बता रहे है की उन्हें क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं, उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। यह बहुत अजीब लगता है क्यूंकि यह कुछ ऐसा दिखता है जैसे मनो कोई खुद ईश्वर को शिक्षा दे रहा हो।
मुझे पता है आज भी बहुत सी महिलायें गर्व करती है जब कोई उन्हें देवी समान कहता है लेकिन एक ऐसा राजा जिसकी डोर दूसरो के हाथ में हो वह राजा नहीं होता।
ख़ैर, मुझे यह किसी बकवास से ज्यादा कुछ नहीं लगता। मैं बिलकुल नहीं मानता की महिलायें देवी समान होती है और न ही मन्ना चाहता क्यूंकि मैं तो भगवान को ही नहीं मानता।
और यदि आप उनमें से एक हो जो इस बात को कहने के लिए ही, पर मानते हो तो आप उनमे से भी एक है जो सारे मुस्लमानों को टेररिस्ट की नज़रो से देखते हो, जो हर एक पाकिस्तानी को भारत के खिलाफ़ देखते हो, जो हर एक ऊंची जात वाले को छोटी जात वालो पर अत्याचार करने वाला ही समझते हो, जो किसी अमीर व्यक्ति को एक बुरा व्यक्ति ही मानते हो, इत्यादि। जो की मनुष्य की अज्ञानता और उसकी बेवकूफी से ज्यादा कुछ नहीं दर्शाती।
- धन्यवाद
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